Ahalya Kruta Sri Rama Stotram

अहल्याकृत-रामस्तोत्रम्

अहल्या कृत श्रीराम स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली वैदिक स्तुति है, जिसे अहल्या ने भगवान श्रीराम के चरण-स्पर्श से शिला रूप से मुक्त होने के पश्चात् उनकी दिव्यता और करुणा की प्रशंसा में रचा था। यह स्तोत्र ‘अध्यात्म रामायण’ के बालकांड में वर्णित है और भगवान श्रीराम की महिमा, उनके मायिक स्वरूप, और उनके चरणों की पवित्रता का गुणगान करता है।

॥ श्रीरामस्तोत्रं अहल्याकृतम् ॥

श्री गणेशाय नमः ।

अहल्योवाचः ।

अहो कृतार्थाऽस्मि जगन्निवास ते पादाब्जसंलग्नरजःकणादहम् ।
स्पृशामि यत्पद्मजशङ्करादिभिर्विमृग्यते रन्धितमानसैः सदा ॥ १॥

अहो विचित्रं तव राम चेष्टितं मनुष्यभावेन विमोहितं जगत् ।
चलस्यजस्रं चरणादिवर्जितः सम्पूर्ण आनन्दमयोऽतिमायिकः ॥ २॥

यत्पादपङ्कजपरागपवित्रगात्रा भागीरथी भवविरिञ्चिमुखान्पुनाति ।
साक्षात्स एव मम दृग्विषयो यदास्ते किं वर्ण्यते मम पुराकृतभागधेयम् ॥ ३॥

मर्त्यावतारे मनुजाकृतिं हरिं रामाभिधेयं रमणीयदेहिनम् ।
धनुर्धरं पद्मविशाललोचनं भजामि नित्यं न परान्भजिष्ये ॥ ४॥

यत्पादपङ्करजः श्रुतिभिर्विमृग्यं यन्नाभिपङ्कजभवः कमलासनश्च ।
यन्नामसाररसिको भगवान्पुरारिस्तं रामचन्द्रमनिशं हृदि भावयामि ॥ ५॥

यस्यावतारचरितानि विरिञ्चिलोके गायन्ति नारदमुखा भवपद्मजाद्याः ।
आनन्दजाश्रुपरिषिक्तकुचाग्रसीमा वागीश्वरी च तमहं शरणं प्रपद्ये ॥ ६॥

सोऽयं परात्मा पुरुषः पुराण एषः स्वयंज्योतिरनन्त आद्यः । var एकः
मायातनुं लोकविमोहनीयां धत्ते परानुग्रह एष रामः ॥ ७॥

अयं हि विश्वोद्भवसंयमानामेकः स्वमायागुणबिम्बितो यः ।
विरिञ्चिविष्ण्वीश्वरनामभेदान् धत्ते स्वतन्त्रः परिपूर्ण आत्मा ॥ ८॥

नमोऽस्तु ते राम तवाङ्घ्रिपङ्कजं श्रिया धृतं वक्षसि लालितं प्रियात् ।
आक्रान्तमेकेन जगत्त्रयं पुरा ध्येयं मुनीन्द्रैरभिमानवर्जितैः ॥ ९॥

जगतामादिभूतस्त्वं जगत्त्वं जगदाश्रयः ।
सर्वभूतेष्वसंयुक्त एको भाति भवान्परः ॥ १०॥

ओंकारवाच्यस्त्वं राम वाचामविषयः पुमान् ।
वाच्यवाचकभेदेन भवानेव जगन्मयः ॥ ११॥

कार्यकारणकर्तृत्वफलसाधनभेदतः ।
एको विभासि राम त्वं मायया बहुरूपया ॥ १२॥

त्वन्मायामोहितधियस्त्वां न जानन्ति तत्त्वतः ।
मानुषं त्वाऽभिमन्यन्ते मायिनं परमेश्वरम् ॥ १३॥

आकाशवत्त्वं सर्वत्र बहिरन्तर्गतोऽमलः ।
असङ्गो ह्यचलो नित्यः शुद्धो बुद्धः सदव्ययः ॥ १४॥

योषिन्मूढाऽहमज्ञा ते तत्त्वं जाने कथं विभो ।
तस्मात्ते शतशो राम नमस्कुर्यामनन्यधीः ॥ १५॥

देव मे यत्र कुत्रापि स्थिताया अपि सर्वदा ।
त्वत्पादकमले सक्ता भक्तिरेव सदाऽस्तु मे ॥ १६॥

नमस्ते पुरुषाध्यक्ष नमस्ते भक्तवत्सल ।
नमस्तेऽस्तु हृषीकेश नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १७॥

भवभयहरमेकं भानुकोटिप्रकाशं
करधृतशरचापं कालमेघावभासम् ।
कनकरुचिरवस्त्रं रत्नवत्कुण्डलाढ्यं
कमलविशदनेत्रं सानुजं राममीडे ॥ १८॥

स्तुत्वैवं पुरुषं साक्षाद्राघवं पुरतः स्थितम् ।
परिक्रम्य प्रणम्याशु साऽनुज्ञाता ययौ पतिम् ॥ १९॥

अहल्यया कृतं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुतः ।
स मुच्यतेऽखिलैः पापैः परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ २०॥

पुत्राद्यर्थे पठेद्भक्त्या रामं हृदि निधाय च ।
संवत्सरेण लभते वन्ध्या अपि सुपुत्रकम् ॥ २१॥

सर्वान्कामानवाप्नोति रामचन्द्रप्रसादतः ॥ २२॥

ब्रह्मघ्नो गुरुतल्पगोऽपि पुरुषः स्तेयी सुरापोऽपि वा
मातृभ्रातृविहिंसकोऽपि सततं भोगैकबद्धातुरः ।
नित्यं स्तोत्रमिदं जपन् रघुपतिं भक्त्या हृदिस्थं स्मरन्
ध्यायन्मुक्तिमुपैति किं पुनरसौ स्वाचारयुक्तो नरः ॥ २३॥

॥ इति श्रीमदध्यात्मरामायणे अहल्याविरचितं श्रीरामचन्द्रस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

इस स्तोत्र को पढ़ने का सर्वोत्तम समय क्या है?

सुबह के समय, स्नान के पश्चात शांत वातावरण में पाठ करना उत्तम है। रामनवमी, एकादशी या गुरुवार को विशेष फलदायी माना गया है।

यह स्तोत्र कौन-कौन पढ़ सकता है?

कोई भी श्रद्धालु व्यक्ति—चाहे स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध—भक्ति भाव से इसका पाठ कर सकता है।

बीज मंत्र

  • ॐ श्रीरामाय नमः

अहल्या कृत श्रीराम स्तोत्रम् के पाठ से क्या लाभ होते हैं?

इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को गहरे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र पापों के प्रायश्चित का साधन है और गंभीर कर्म दोषों से मुक्ति प्रदान करता है। इसका नियमित जप मानसिक तनाव को दूर करता है, जीवन में शांति और स्थिरता लाता है तथा भगवान श्रीराम की कृपा से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति, शत्रु बाधाओं से सुरक्षा और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा इसके प्रमुख लाभ हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: अहल्या कृत श्रीराम स्तोत्रम् का पाठ करने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: इसके पाठ से पापों का नाश, मोक्ष की प्राप्ति, संतान सुख, मानसिक शांति और शत्रु बाधा से रक्षा होती है।

प्रश्न 2: क्या यह स्तोत्र मोक्ष प्रदान करता है?
उत्तर: हाँ, श्रद्धा से नियमित पाठ करने पर साधक को आत्मिक शुद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 3: क्या निःसंतान स्त्री को इसका लाभ होता है?
उत्तर: हाँ, एक वर्ष तक इसका नित्य पाठ करने से संतान प्राप्ति का योग बनता है।

प्रश्न 4: क्या यह स्तोत्र मानसिक शांति देता है?
उत्तर: हाँ, इसके पाठ से मन शांत होता है और भक्ति भाव जागृत होता है।

प्रश्न 5: क्या यह स्तोत्र शत्रु बाधाओं से रक्षा करता है?
उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं से रक्षा प्रदान करता है।