Dashrath Krit Shani Stotra
दशरथ कृत शनि स्तोत्र एक प्राचीन वैदिक स्तुति है, जिसे अयोध्या के महाराज दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु रचा था। मान्यता है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या, महादशा या अंतर्दशा जैसे कष्टकारी प्रभावों से राहत दिलाता है। यह स्तोत्र न केवल शनि के प्रकोप से रक्षा करता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी प्रदान करता है। विशेष रूप से शनिवार के दिन इसका पाठ करना अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना गया है।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः॥ 1 ॥
नमः सोमसुतायैव भ्रातृभक्ताय वै नमः।
नमो मन्दगतीनां च नेतृवृन्द नमोऽस्तु ते॥ 2 ॥
नमो नित्यं क्षुधार्ताय दुर्वृत्तस्य दमनाय च।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने॥ 3 ॥
नमस्ते सर्वसत्वानां नायकाय कृपानिधे।
नमः पूर्णाय शान्ताय दीर्घश्रुतविचक्षण॥ 4 ॥
नमः शान्ताय धीमते नीरोगाय नमो नमः।
नमः कालप्रमाणाय स्थूलसूक्ष्मात्मने नमः॥ 5 ॥
नमः सूक्ष्मतरायैव स्थूलरूपेण ते नमः।
नमो विश्वेश्वरायैव भूतनाथ नमोऽस्तु ते॥ 6 ॥
नमो धर्मविहीनाय सदा अधर्मरताय च।
नमो घनाय मेघाय घनगर्जितनिर्भर॥ 7 ॥
नमो ग्रहनकत्रे च ग्रहपीडापराय च।
नमो ज्योतिर्मयायैव ज्योतिरेष नमोऽस्तु ते॥ 8 ॥
एतत् स्तोत्रं पठेन्नित्यं शनि संतानकृद् भवेत्।
कण्ठे धारयते यस्तु मुच्यते सर्वसंभवात्॥
इति श्री दशरथकृतं शनि स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस स्तोत्र इतिहास और कथा क्या है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शनि की दृष्टि अयोध्या पर पड़ने वाली थी, तब राजा दशरथ ने शनि देव से प्रजा की रक्षा हेतु प्रार्थना की। दशरथ की भक्ति और स्तुति से प्रसन्न होकर शनिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह शनि के कष्टों से मुक्त रहेगा।
इस स्तोत्र के लाभ क्या है?
- शनि दोष से राहत पाने और जीवन में सुख-शांति बनाए रखने में सहायक।
- आर्थिक तंगी, मानसिक तनाव और शारीरिक कष्टों से छुटकारा पाने का प्रभावी उपाय।
- शनिवार के दिन काले तिल, उड़द, लोहे का दान करना और सरसों के तेल का दीपक जलाना विशेष रूप से फलदायक होता है।
इस स्तोत्र का श्रेष्ठ समय क्या है?
- शनिवार को, विशेष रूप से प्रातः स्नान के उपरांत या संध्या 7 बजे, शनि स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- शुक्ल पक्ष के शनिवार अथवा शनि जयंती से पाठ की शुरुआत करना अत्यधिक फलदायक होता है।
इस स्तोत्र को कौन पढ़ सकता है?
- वे व्यक्ति जिनकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या, या शनि की महादशा/अंतर्दशा चल रही हो।
- जो लोग शनि दोष, आर्थिक संकट, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं या मानसिक तनाव से पीड़ित हैं।
- विशेष रूप से कर्क, वृश्चिक, मकर, कुंभ और मीन राशि के जातकों के लिए यह स्तोत्र अत्यधिक लाभकारी माना गया है।
बीज मंत्र
- ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
- ॐ शं शनैश्चराय नमः
- ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
इस स्तोत्र से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: दशरथ कृत शनि स्तोत्र क्या है?
उत्तर: यह एक पवित्र वैदिक स्तोत्र है जिसे अयोध्या के राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए रचा था। इसका पाठ शनि के प्रकोप से रक्षा करता है और जीवन में संतुलन लाता है।
प्रश्न 2: इस स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: शनिवार के दिन, प्रातः स्नान करके या संध्या के समय, शांत मन से काले वस्त्र पहनकर सरसों के तेल का दीपक जलाकर इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है।
प्रश्न 3: किन लोगों को यह स्तोत्र अवश्य पढ़ना चाहिए?
उत्तर: जिनकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या, महादशा या अंतर्दशा चल रही हो, या जो आर्थिक, मानसिक व स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान हैं, उन्हें यह पाठ करना चाहिए।
प्रश्न 4: क्या किसी विशेष दिन से इसका पाठ प्रारंभ करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, शुक्ल पक्ष के शनिवार या शनि जयंती जैसे पवित्र दिन से इसका आरंभ करना शुभ और प्रभावशाली माना गया है।
प्रश्न 5: क्या स्तोत्र पाठ से केवल शनि दोष दूर होता है?
उत्तर: नहीं, यह स्तोत्र अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभावों को भी शांत करता है और जीवन में मानसिक शांति, स्थिरता व समृद्धि प्रदान करता है।