द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इस स्तोत्र में भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है, जो भारत के विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं। इसका नियमित पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को मोक्ष प्रदान करता है और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाता है।
श्री द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥
श्रीताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस स्तोत्र का इतिहास और उत्पत्ति क्या है?
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी, जो 8वीं शताब्दी के महान संत और दार्शनिक थे। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का महात्म्य वर्णन किया है, जिससे भक्तों को इन पवित्र स्थलों का स्मरण और दर्शन का फल प्राप्त होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
इस स्तोत्र का सर्वोत्तम समय क्या है?
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल, विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) में करना अत्यंत शुभ है। इस समय वातावरण शांत और शुद्ध होता है, जिससे ध्यान और भक्ति में एकाग्रता बढ़ती है। यदि संभव न हो, तो स्नान के पश्चात किसी भी समय शुद्ध मन से इसका पाठ किया जा सकता है। पाठ के समय भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर बैठना शुभ है।
इस स्तोत्र को कौन कौन पढ़ सकता है?
यह स्तोत्र सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त है। विशेष रूप से वे लोग जो मानसिक शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं, उन्हें इसका नियमित पाठ करना चाहिए। विद्यार्थियों, गृहस्थों, साधकों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह स्तोत्र लाभकारी है।
बीज मंत्र
- सोमनाथं
- मल्लिकार्जुनम्
- महाकालम्
- ओंकारम्
- वैद्यनाथं
- भीमशंकरम्
- रामेशं
- नागेशं
- केदारम्
- त्र्यंबकम्
- विश्वेशं
- घृष्णेशं
इस स्तोत्र के लाभ क्या है?
- जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः और सायं इसका पाठ करता है, उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भगवान शिव के विभिन्न रूपों से गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित होता है, जिससे आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
- इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है और तनाव, चिंता तथा अन्य मानसिक विकारों से राहत मिलती है।
- इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
- जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, उसे बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है, भले ही वह शारीरिक रूप से उन तीर्थ स्थलों पर न जा सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. 12 ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् क्या है?
उत्तर: 12 ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसमें भगवान शिव के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है, जो भारत के विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करता है।
2. इस स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से:
- सात जन्मों के पापों का नाश होता है।
- मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
- जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है।
- जो व्यक्ति बारहों ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नहीं कर सकते, वे इस स्तोत्र का पाठ करके उन तीर्थों के दर्शन का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
3. इस स्तोत्र का पाठ करने का सर्वोत्तम समय क्या है?
उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल और सायं काल में करना विशेष लाभकारी होता है। स्नान के पश्चात शुद्ध मन से भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
4. क्या सभी लोग इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं?
उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त है। विशेष रूप से वे लोग जो मानसिक शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं, उन्हें इसका नियमित पाठ करना चाहिए।
5. क्या इस स्तोत्र में कोई विशेष बीज मंत्र हैं?
उत्तर: इस स्तोत्र में प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का नाम अपने आप में एक शक्तिशाली बीज मंत्र है, जैसे:
- सोमनाथं
- मल्लिकार्जुनम्
- महाकालम्
- ओंकारम्
- वैद्यनाथं
- भीमशंकरम्
- रामेशं
- नागेशं
- केदारम्
- त्र्यंबकम्
- विश्वेशं
- घृष्णेशं
इन नामों का उच्चारण ध्यानपूर्वक करने से मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप इस स्तोत्र के साथ करने से लाभ और भी बढ़ जाता है।