Shri Guru Chalisa Lyrics Hindi

Guru Chalisa

॥ दोहा ॥

ॐ नमो गुरुदेवजी, सबके सरजन हार।
व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार॥

देवन के भी देव हो, सिमरुं मैं बारम्बार।
आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार॥

ऋषि-मुनि सब संत जन, जपें तुम्हारा जाप।
आत्मज्ञान घट पाय के, निर्भय हो गये आप॥

गुरु चालीसा जो पढ़े, उर गुरु ध्यान लगाय।
जन्म-मरण भव दुःख मिटे, काल कबहुँ नहीं खाय॥

गुरु चालीसा पढ़े-सुने, रिद्धि-सिद्धि सुख पाय।
मन वांछित कारज सरें, जन्म सफल हो जाय॥

॥ चौपाई ॥

ॐ नमो गुरुदेव दयाला, भक्तजनों के हो प्रतिपाला।
पर उपकार धरो अवतारा, डूबत जग में हंस एक उबारा॥

तेरा दरश करें बड़भागी, जिनकी लगन हरि से लागी।
नाम जहाज तेरा सुखदाई, धारे जीव पार हो जाई॥

पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी।
गुरु समान दाता कोई नाहीं, राजा प्रजा सब आस लगायी॥

गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, कोटि कल्प के पाप नसावे।
जिन पर कृपा गुरु की होई, उनको कमी रहे नहीं कोई॥

हिरदय में गुरुदेव को धारे, गुरु उसका हैं जन्म सँवारें।
राम–लखन गुरु सेवा जानी, विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी॥

कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी।
सद्गुरु कृपा अति है भारी, नारद की चौरासी टारी॥

कठिन तपस्या करें शुकदेव, गुरु बिना नहीं पाया भेद।
गुरु मिले जब जनक विदेही, आतमज्ञान महा सुख लेही॥

व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी।
अनंत ऋषि मुनि अवतारा, सद्गुरु चरण-कमल चित धारा॥

सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, कोटि कल्प के पाप निवारे।
सद्गुरु सेवा उर में धारे, इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे॥

पूर्वजन्म की तपस्या जागे, गुरु सेवा में तब मन लागे।
सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, जनम अकारथ क्यों है खोवे॥

सद्गुरु सेवा बिरला जाने, मूरख बात नहीं पहिचाने।
सद्गुरुनाम जपो दिन-राती, जन्म-जन्म का है यह साथी॥

अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, गुरु सेवा में ध्यान लगावे।
गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, मिटे भरम आतम परकाशी॥

पूर्व पुण्य उदय सब होवे, मन अपना सद्गुरु में खोवे।
गुरुसेवा में विघ्न पड़ावे, उनका कुल नरकों में जावे॥

गुरुसेवा से विमुख जो रहता, यम की मार सदा वह सहता।
गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, परमारथ का नहीं अधिकारी॥

गुरुविमुख को नरक न ठौर, बातें करो चाहे लाख करोड़।
गुरु का द्रोही सबसे बूरा, उसका काम होवे नहीं पूरा॥

जो सद्गुरु का लेवे नाम, वो ही पावे अचल आराम।
सभी संत नाम से तरिया, निगुरा नाम बिना ही मरिया॥

यम का दूत दूर ही भागे, जिसका मन सद्गुरु में लागे।
भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे॥

जो सद्गुरु की सेवा करते, डाकन-शाकन सब हैं डरते।
जंतर-मंतर, जादू-टोना, गुरु भक्त के कुछ नहीं होना॥

गुरू भक्त की महिमा भारी, क्या समझे निगुरा नर-नारी।
गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे, धरमराज का लेखा छूटे॥

गुरुभक्त निज रूप ही चाहे, गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे।
गुरु भक्त सबके सिर ताज, उनका सब देवों पर राज॥

॥ दोहा ॥

यह सद्गुरु चालीसा, पढ़े सुने चित्त लाय।
अंतर ज्ञान प्रकाश हो, दरिद्रता दुःख जाय॥

गुरु महिमा बेअंत है, गुरु हैं परम दयाल।
साधक मन आनंद करे, गुरुवर करें निहाल॥